Saturday, December 10, 2011

गंगा ढाबा पे बैठ कर , ६१५ की ओर देखते हुए

गंगा ढाबा पे बैठ कर , ६१५ की ओर देखते हुए .....

चाय अभी आधी ही पी थी , कोई पुराना , आप का ज़िक्र कर गया ,
आप का नाम क्या सूना , हम तोह किसी और ही समय मैं समां गये

आप तीसरे स्टॉप पर मुस्कुराते हुए बस मैं चढ़ती थी ,
हम नज़रे गिरा लेते थे , साला दिल मैं अंग्रेजी गाना सुनाई देता था ,
दिन मन्नो wonderful हो जाता था ,

एक वो दिन है , और आज का दिन है ,
आशिकी मैं भी मिलावट , बेचारी भावनाओ मैं भी बनावट
कुछ रह गया , तोह अपने गंगा ढाबा की चाय

गंगा ढाबा पे बैठ कर , ६१५ की ओर देखते हुए .....
कभी आइयेगा , अप्प को चाय ज़रूर पिलाएँगे


Thursday, December 1, 2011

उस सूर्योदय की ओर चलता हूँ

वो संगीत जो निडर हो ,
वो आशा जो बंदिश ना जाने ,
भावना जिसकी हम परिभाषा ना खोजे ,
जब कर्म आशिकी बन जाये ,
उस सूर्योदय की ओर चलता हूँ

हर दिन अनन्त  , हर सोच मैं सच
रास्ते खुद बनाने की क्षमता
गलत राहों से लौट जाने का सहस
जब सुकून और जूनून दोनों ही साथ रहे 
उस सूर्योदय की ओर चलता हूँ